देख फागुन
गुदगुदी से भर गया तन।
गजल मीठी
साँस में पागल हुई है
धड़कनों पर
लय थिरक मादल हुई है
बजी चूड़ी
बज उठा पायल छनक छन।
रंग से छू
देह के अवयव खिले हैं,
और गुलाबी
नयन को सपने मिले हैं,
टेसुओं-सा
हो गया है देह का वन।
फबतियाँ सौ
सिहरनों में गीत बाँचे
औ’ सुधि में
सजन के संदेश नाचे,
नवल धुन-सा
एक ठुमका हर गया मन।